Word-Meaning: - किन्तु हे रात्रे ! (ता) वे (युगानि) युग-अवसर (घ) तो (उत्तरा) बहुत काल के अनन्तर (आगच्छात्) आवेंगे (यत्र) जब कि ये (जामयः) असमानजातीय-व्यधायक-मेल में रुकावट डालनेवाले (अजामि) असमानजातीयरहितकर्म-अव्यवधायक कर्म-अविरुद्ध कर्म (करिष्यन्ति) करेंगे। परन्तु हे रात्रे ! तब तक तुझ पुत्राभिलाषिणी से बिना गार्हस्थ्य के ठहरना दुष्कर है, इसलिये मैं पुत्रोत्पत्र करने में असमर्थ होता हुआ तुझे आज्ञा देता हूँ कि (सुभगे) हे प्यारी ! (वृषभाय) वीर्य प्रदान करने में समर्थ पुरुष के लिये (बाहुम्) अपनी भुजा को (उपबर्बृहि) फैल और (मत्) मुझ दिन से (अन्यम्) भिन्न (पतिम्) पुरुष को (इच्छस्व) स्वीकार कर ॥१०॥
Connotation: - ज्योतिष के रहस्य को स्पष्ट करते हुए मन्त्र में कहा गया है कि एक समय ऐसा आयेगा कि ये अलग-अलग रूप में न रहकर एक हो जावेंगे, वह सृष्टि का प्रलयकाल होगा। गृहस्थ के लिये वेद का आदेश है कि जो पति गर्भाधान करने में असमर्थ है, वह सन्तानाभिलाषिणी पति को नियोग से सन्तानोत्पत्ति करने की अनुमति दे देवे ॥१०॥ समीक्षा (सायणभाष्य)-“यत्र येषु कालेषु जामयो भगिन्यो-अज्राम्यभ्रातरं पतिं कृण्वन्करिष्यन्ति” यमी जो सायण के मत में भगिनी है, वह इसी वैदिक समय में ही सम्भोग करने को तैयार है, फिर यह कैसा हेतु वचन है ? हाँ, यदि वाक्य वचन हो कि यम भ्राता अभ्राता का कार्य करेगा, ऐसा उत्तर समय आवेगा, तब तो हेतु दर्शाना ठीक भी था, किन्तु सायण की अर्थयोजना हेतुदोष से युक्त है ॥१०॥